ज्यादातर यही सुनने को मिलता है कि “बॉम्बे देश का सबसे मॉडर्न शहर है….. लड़कियां वहां सबसे ज्यादा “सेफ” है.” पर क्या वाकयी ऐसा है??
4 साल वहां रहकर और बार आना जाना रहा जिसमें मुझे एक भी दिन कोलेज कैंपस के बाहर सुरक्षित महसूस नहीं हुआ क्योंकि यहां का “इतना तो चलता है या तुम गांव से आयी हो तो लग रहा होगा थोडा मोडर्न बनो” जैसी बातों से हमेशा डर लगा क्योंकि मोडर्न बनने का मतलब यहां पर लडकियों पर कयी तरह के अन्याय के विरोध को दबा दिया जाना लगाया गया।
और आज गनेडीवाला जैसी अत्याचार को संरक्षण देने वाली जज ने मेरा ये डर यकीन में बदल दिया कि पढे लिखे और बडे शहरों में भी लोग कितने संकीर्ण हो सकते हैं।
अगर बॉम्बे मे लड़कियो के स्तन को दबा देना लीगल है…. तो गांव देहात का कल्पना भी नही कर सकते. बॉम्बे हाईकोर्ट के नाम पर कलिख पोतने वाले इस आदेश से तो लगता है कि किसी के भी स्तन को दबाया जा सकता है।
अगर इन जज साहिबा के साथ ऐसा होगा तो भी मैडम क्या आप इसे सहर्ष स्वीकार करेंगी??
शर्म आती है ऐसी वहशी सोच वाले लोगों को औरत या जज कहते हुए होता तो हर मेले, नुक्कड़, बाजार, बस मे आया है सदियो से लेकिन अब बॉम्बे हाईकोर्ट ने इसे लीगल बनाकर बाकि मर्दो को भी स्पष्ट मेसेज दे दिया है कि ये मुल्क सिर्फ तुम्हारा है. ये पढ़के लग रहा है कि पढाई भी इस बीमारी को हटा न सकी।
ऐसा लग रहा है मुझे जैसे औरत को इंसान होने का हक नहीं है उसे इंसाफ के नाम पर औरत का खोल ओढे षुरुष सत्ता को कानून मान चुकी मृत आत्माऐं बैठी है ं।
पर आखिर ऐसे लोग अगर इस पद पर बैठेंगे तो न्याय व्यवस्था का मतलब ही नहीं रह जाएगा। जला दिया जाए इस मनुस्मृति wali thought को…इतनी सड़ांध आने लगी है इस व्यवस्था से कि ऐसे लोग जो संविधान के मायने नहीं जानते संविधान की शपथ लेकर संवैधानिक पद कैसे गृहण कर सकते हैं। .
देवताओ के राजा इंद्र को बालात्कार करने पर भी राजा बनाया था…. हम करीब जा रहे है उसी “नरक” के. जिसका राजा इंद्र को बनाकर जिसे स्वर्ग कहा जाता है।
कहाँ जाएंगी लड़कियां? कोर्ट? थाना? कचहरी? हर जगह तो उनका शोषण होता है।
इन्ही मा बहनों के नाम पर गालियां बनाकर इनके नाम पर गिरी हुई मानसिकता के लोग लडते हैं पुरूष प्रधानता केवल आदमी के दिमाग को नहीं औरत के दिमाग को भी खा चुकि है।
ऐसी औरतों के हाथ में अधिकार आ जाने से आदमी के अत्याचारों को शह भी मिलती है और औरत पर लांछन लगाने का मौका भी।
धिक्कार है ऐसी पशुवत मानसिकता औरत के खोल में समा गयी तभी समाज गर्त में जा रहा है। सबसे बड़ी विडंबना भी यही है कि जितना ये शॉकिंग लग रहा है उतना ही नार्मल भी है ये, विशेषत: मुंबई वाले एडवांस लोगों के लिए . If you can….. लडकियों खुद से आगे आओ इन मरे जमीर के नेता, जज, अधिकारियों के भरोसे खुद को मत रखा। और वो भाई भी आगे जरूर आऐंगे जिनका जमीर अभी जिंदा हैं इंसानियत जिनमें बाकि है।
This is commentry on the ridiculous and shamefull
रचना मोहिनी
#FightAgainstInjustice
This is what to be called as “fake modernization” and most of the big cities have adopted and are adopting that… “Take it easy, Itna to chalta hai”. This is what “being modern” stands today…
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Absolutely right dear and the worst part of modernization which has a lot of impact also from the entertainment industry which has produced women as way of entertainment and our rubbish rituals supported OT.
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आपकी रचना से मुझे अनजानी बातें समझ में आई हैं। क्या, न्यायाधीश स्थान में बैठकर एक महिला ऐसी निर्णय लेने में उसे शरम नहीं आती। 🙄 चिंतनीय।😨
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Thanks ki aapne waqt nikal kr padha or socha…. sahi baat h aapki …. you are right that its really serious issue 😦
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nice work
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thanks
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