गाया तो था मैंने हर लम्हा तेरी जुदायी में
कैसे जिया था मैंने इतना वक्त तन्हाई में
तुझको नहीं खबर मेरे क़मर
तरस गए नैन तेरे खुशगवार दीदार को
और आस में तेरे पास आने कि दिल भी था बोझिल
तेरे सामने होने पर भी जो तू दूर रहा तो
न जाने कितना सताया तेरी यादो ने मुझको
मेरे मन से इकबार पूछ तो सही
हालात इसके आकर ज़रा मेरे कातिल
गम ने मुझे तड़पाया कितना
तुझे तो भनक भी न लगी मेरे साहिल
कि मझदार में कही उलझ गयी थी मेरी कश्ती
जो निकली थी अपने ठिकाने से करने तुझको हासिल
तेरे गैर से व्यवहार ने इसको रुलाया बहुत
तेरी जुदाई ने गाना सिखाया
खामोशिया ही बोलती थी जहा आज तलक
जाने क्यू इतना नीर आंखिये ने बहाया
अब तो आवाज़ लगा दे मेरे संगदिल
इस नैया के चश्म भी नहीं बोलते अब तो
एक बार मुड़के हालत तो देख तेरे प्यार की
वो सबसे हसीं पारी, तेरे सपनो की रानी
कैसे एक बुझी शमाँ का बुत बन गयी
तुझसे पहले से इश्क़ की चाहत में मेरे हमसफ़र
वो हंसी आज गम में बदल गयी
औ बिछरने वाले, आज फिर से
इन बेरुखी हवाओ में मिश्री घोलदे
तेरे दर पे तेरी मोहब्बत को यूँ न तड़पा
न यूं तू मुर्दो सी अकड़ दिखा
अगर हम चाहे तो वक़्त आज भी अपना है
और अपना ही रहेगा, क्योंकि
आज भी फिर से जल सकती है ये बुझी शमाँ
एक बार तू हाथ बढ़ा के तो देख मेरे मीत
इसने आज तलक तेरे लिए ही गए हैं सारे गीत
इतना भी न सता इस पागल पंछी को
कि डम तोरने को मजबूर हो तेरी दर पे यूं
एक बार अपने दिल पे हाथ रख के तो पूछ
क्या वो भूल गया वो हमारी सारी जुस्तजू
कैसे तुमने फिरा ली वो प्यार से भरी आँखे रूबरू
क्या ये सच है या कि एक दु:स्वपन
कि मैं आज बैठी हूँ अपने अरमानो की लाश पर
औ जाने वाले मुसाफिर, यूँ भी न जा छोड़कर
यु तो अपने वादो से न तू मुकर
इतना भी बुरा नहीं है मीत तेरा कि
छोर जाये तू उसे अंधेरो से घिरा देखकर भी
भूल जाती हूँ मैं हर गीत तेरी जुदाई के नाम पर
कैसे काटु हर पल यूँ तन्हाई में
तेरे साथ होकर भी जो साथ नहीं तेरा
औ रांझणा ज़रा मुड़के देख तो सही
कैसे हो गयी तेरी हीर आज, परायी सी
ऐसा भी क्या गुनाह हुआ कि
बतला भी नहीं सकता तू मुझे
ऐसे भी क्या रुसवा हुए मेरे मांझी
कि इत्तिला भी नहीं सकते कभी
तू आया भी था तेरी चाह से
चला भी गया तेरी चाह से
कभी तो ख्याल किया होता कि
क्या कह रही है रूह तुम्हारी
आने का कारन था तो जाने का भी होगा
इक बार बता दे तू फिर, इंतज़ार तो न होगा\
राह पे परे पत्थर की तरह
ठोकर तो न मार हर पल
इक बार तो मुँह खोल तू
कभी तो हमसे ख़ुशी से बोल तू
कि क्या है जाने की वजह
क्या है हर वक़्त रूठने की वजह
मालूम है हमें की चैन उधर भी नहीं है
बिन बोले हमसे राजी तू भी नहीं है
पर इधर भी दिल तेरा ही है
तो फिर बोलने में हर्ज़ क्या है
दिल न खोलने का मर्ज़ क्या है
मेरे सपनो के राजा तू भी इक सपना था
कैसे मानू की असल दुनिया वीरान होगी
हमने तो सोचा था रूठ जाने की तेरे
वजह तू नहीं कोई और होगी
मगर ये सही नहीं तो फिर क्यू
चुपचाप है तू मेरे हमराही
कुछ तो बोल क्यू सब सून है
अब कोई आस नहीं, कोई पास नहीं
न पुकारेंगे तेरा नाम भी कभी
पर साथ रहेंगे तेरे ही मेरे साथी
अब तो बतला दे तेरे रूठ जाने की वजह
ताकि ले सके खुशियाँ, ग़लतफ़हमी की जगह
जाने क्यू लगता है अब जैसे
सावन भी आएगा भादो भी बरसेगा
पर, न कोई रोयेगा न कोई हर्षेगा
इस वीराने गांव में बहारें भी आएँगी
इस पुराणी नाव में डोली भी जाएगी
उस पीपल की छाव में पपीहा भी गाएगा
यू मेघा संग मयूरा भी नाचेगा
हम दोनों संग संग भी होंगे
मगर न होंगे फिर भी संग-संग
जाने क्यू बिना किसी रंज-औ-जंग
हर कोई पूछेगा, तो हम क्या बोलेंगे
बिना कारन तो बस बेवफा ही तोलेंगे
मगर है खबर हमें कि
सनम हमारा बेवफा तो नही है
एक दिन वो जागेगा, हंसेगा – गुनगुनाएगा
नाराजगी की वजह भी बतलायेगा
गैर और अपने का फ़र्क़ जब समझ जायेगा
तब ही उसको सब समझ आजायेगा
बस उस दिन की आस है, उसी पल का इंतज़ार
तभी बरसेगा रंग और आएगी बहार
तब तक जाने कैसे कटेगा ये तनहा सफर
जाने कैसे तय होगी अकेले ये अनजान डगर
साहिल तो है साथ मगर हासिल नहीं अभी
जाने क्यू नहीं जनता हमारा हबीब ये अभी
गुनाह किया तो सज़ा भी दे
इस शऊर का मोज़ाब इत्तिला दे
फिर
हर उक़ूबत क़बूल है आशना
बस इस दरिया का मोड़ बता दे
आते लम्हो का राज़ बता दे
और जाते पल की याद भुला दे
आज ही तू इक वादा कर मेरे रफ़ीक़
के कभी न जायेगा तू आके मेरे क़रीब Copyright © Rachana Dhaka
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